CAA (नागरिकता संशोधन कानून, 2019) को भारतीय संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया, जिसमें 125 मत पक्ष में थे और 105 मत विरुद्ध। यह बिल पास हो गया और इस विधेयक को 12 दिसंबर को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिल गई। CAB के पारित होने से उत्तर-पूर्व, पश्चिम बंगाल और नई दिल्ली सहित पूरे देश में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली 15 दिसंबर को ठप पड़ गई, जब जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा विरोध मार्च का आयोजन किया गया और इसने हिंसक रुख अपना लिया। छात्र और पुलिस आमने-सामने थे। झड़पें हुईं और सार्वजनिक बसों में आग तक लगाई गई।
हिंसक झड़पों के बाद, दिल्ली पुलिस ने हिंसा में शामिल होने के लिए कथित तौर पर जामिया के 100 से अधिक छात्रों को हिरासत में लिया। जामिया के छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई के विरोध में और हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई की मांग को लेकर 15 दिसंबर को देर शाम जेएनयू और डीयू जैसे अन्य विश्वविद्यालयों के छात्रों सहित हजारों लोग दिल्ली पुलिस मुख्यालय के बाहर एकत्र हुए। वहीं, कई हस्तियों द्वारा भी CAB और इसके कार्यान्वयन और इसके विरोध में छात्रों पर पुलिस की कार्रवाई के खिलाफ अपनी आवाज उठाई गई है। एनआरसी के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन हुए हैं। तो आइए समझते हैं कि CAA और NRC क्या है, दोनों में क्या अंतर है और इस मुद्दे पर देश में बवाल क्यों मचा हुआ है।
CAA full form: Citizenship Amendment ACT, 2019 (नागरिकता संशोधन कानून, 2019)
NRC full form: National Register of Citizens (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर)
CAA क्या है?
नागरिकता संशोधन कानून ( CAA - Citizenship Amendment Act) 2019 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाता है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है। यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है। इससे भारत के किसी भी व्यक्ति की नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसका किसी भी भारतीय नागरिको से कोई लेना-देना नहीं है, चाहे वे किसी भी धर्म से आते हो।
CAA में कौन से धर्म शामिल हैं?
CAA में छह गैर-मुस्लिम समुदायों - हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी से संबंधित अल्पसंख्यक शामिल हैं। इन्हें भारतीय नागरिकता तब मिलेगी जब वे 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में शरण ले लिए हों।
पिछली नागरिकता के मानदंड क्या थे?
इस संशोधन बिल के आने से पहले तक, भारतीय नागरिकता के पात्र होने के लिए भारत में 11 साल तक रहना अनिवार्य था। नए बिल में इस सीमा को घटाकर छह साल कर दिया गया है।
NRC क्या है?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन बिल यानी एनआरसी बिल एक रजिस्टर है, जिसके जरिये भारत में रहने वाले सभी वैध नागरिकों का रिकॉर्ड रखा जाएगा। इसे सबसे पहले 2013 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम राज्य में लागू किया गया था। फिलहाल, ये असम के अलावा अभी किसी भी राज्य में लागू नहीं किया गया है। वहीं, इस बिल में कुछ संशोधन करके केन्द्र सरकार द्वारा इसे एक बार फिर लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया गया। दोनों ही सदनों से पारित होने के बाद इस पर अधिनियम तैयार किये जा रहे हैं। पूरी तौर पर देशहित का नियम बनने के बाद इसे लागू किया जाएगा।
NRC को लेकर लोगों के मन में संदेह क्यों
एनआरसी को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहले ही ये स्पष्ट कर चुके हैं कि, एनआरसी को देशभर में लागू किया जाएगा। इसके जरिये भारत के किसी धर्म के नागरिकों से भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसका सीधा मकसद सिर्फ और सिर्फ भारत में अवैध रूप से घुसे लोगों की शिनाख्त करके उन्हें देश से बाहर करना है। हालांकि, लोगों के मन में इसे लेकर कई तरह के सवाल भी है, जैसे- एनआरसी में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है? एनआरसी के लिए किन किन दस्तावेजों की जरूरत होगी? एनआरसी के मापदंडों में शामिल न होने वाले लोगों का क्या होगा? आदि, ऐसे ही अहम सवालों के जवाब हम आपको दे रहे हैं। आइये जानें।
NRC में शामिल होने के लिए क्या जरूरी है?
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर- NRC के तहत भारत का नागरिक साबित करने के लिए देश के हर व्यक्ति को दस्तावेजों के माध्यम से नागरिकता बतानी होगी। यहां ये याद रखना जरूरी है कि, ये नियम देश के किसी एक धर्म के नागरिकों पर लागू नहीं होगा, बल्कि नागरिकता सिद्ध करने के लिए देश के सभी नागरिकों को बराबर ही प्रमाण रूपी दस्तावेजों का हवाला देना होगा, ताकि, उसे नागरिकता रजिस्टर में दर्ज किया जा सके। एनआरसी के तहत भारत के हर नागरिक को ये साबित करना होगा कि, वो या उसके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले भारत में थे।
NRC के तहत पात्रता मानदंड क्या है?
NRC के तहत, एक शरणार्थी भारत का नागरिक होने के योग्य है यदि वे साबित करते हैं कि या तो वे या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 को या उससे पहले भारत में थे। असम में NRC प्रक्रिया को अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को बाहर करने के लिए शुरू किया गया था, जो भारत आए थे। बता दें कि 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
NRC में शामिल होने के लिए किन दस्तावेजों की होगी जरूरत
वैसे तो इसके स्पष्ट दस्तावेज तो सरकार द्वारा गहन मंथन के बाद देशभर में एनआरसी लागू होने के बाद किये जाएंगे। लेकिन, गृह मंत्रालय द्वारा लोगों से कहा गया है, फिलहाल इसके स्पष्ट दस्तावेजों पर चर्चा चल रही है। लेकिन कुछ डाक्यूमेंट्स ऐसे हैं, जो आमतौर पर इन दस्तावेजों की सूची में शामिल होंगे ही। जारी सूची के अनुसार, खुद को भारत का वैध नागरिक साबित करने के लिए नागरिक को रिफ्यूजी रजिस्ट्रेशन, आधार कार्ड, बर्थ सर्टिफिकेट, एलआईसी पॉलिसी, सिटिजनशिप सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, सरकार के द्वारा जारी किया लाइसेंस या सर्टिफिकेट में से कोई एक होना चाहिए। इन्ही दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता दी जाएगी।
NRC में मांगे गए दस्तावेज नहीं होने पर क्या होगा
अगर राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में आपका नाम नहीं है या आप अनिवार्य दस्तावेज जमा नहीं करा पाए हों तो आपको अपने दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया के जरिए नागरिकता पाने का पूरा मौका दिया जाएगा। सरकार ने देश के लोगों को भरोसा दिया है कि, दावे और आपत्तियों के निस्तारण के बाद ही अंतिम एनआरसी जारी किया जाएगा और यहां तक कि इसके बाद भी हर व्यक्ति को विदेशी न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाने का मौका मिलेगा। इसके बाद भी अगर कोई व्यक्ति एनआरसी में शामिल नहीं हो सकेगा, तो उसे देश की नागरिकता नहीं दी जाएगी। उसकी व्यवस्था डिटेंशन सेंटर में की जा सकती है, जैसी व्यवस्था असम में अवैध रूप से रहने वालों की हुई है। इसके बाद सरकार उन देशों से संपर्क करेगी जहां के वो नागरिक हैं। अगर सरकार द्वारा उपलब्ध कराए साक्ष्यों को दूसरे देशों की सरकार मान लेती है, तो ऐसे अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजा जाएगा।
एनआरसी और सीएए में ये हैं मुख्य अंतर
-नागरिकता संशोधन कानून 2019 CAA जहां धर्म आधारित है, वहीं राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर NRC का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
-CAA के तहत मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है।
-CAA में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। इसका तर्क ये दिया जा रहा है कि, पड़ोस के तीनों देश मुस्लिम बाहुल है, वहां उनके उत्पीड़न का सवाल नहीं उठता।
-NRC में अवैध अप्रवासियों की पहचान करने की बात कही गई है, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या वर्ग के हों। कानून के तहत, ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजा जाएगा।
-CAA भारतीय मुसलमानों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जबकि इसे लेकर एक गलत धारणा बन गई है कि, इस कानून के तहत भारतीय मुसलमानों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा।
CAA के खिलाफ असम में सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन क्यों
पूर्वोत्तर राज्यों में CAA के विरोध का कारण ये है कि, यहां के लोगों का मानना है कि, देश की नागरिकता मिलने के बाद उन लोगों को भी नागरिकता मिल जाएगी, जो अब तक यहां शरणार्थी थे। इसके परिणास स्वरूप उनकी संस्कृति और भाषाई विशिष्टता पर खतरा बढ़ने के साथ साथ आर्थिक हालात पर भी गहरा असर पड़ेगा।
नागरिकता संशोधन कानून, 2019 से असम एनआरसी द्वारा बाहर किए गए लोगों की मदद करने की उम्मीद जताई गई है। हालांकि, राज्य के कुछ समूहों को लगता है कि यह 1985 के असम समझौते को रद्द करता है।
1985 के असम समझौते ने 24 मार्च, 1971 को अवैध शरणार्थियों के निर्वासन की कट-ऑफ तारीख तय की थी। जबकि NRC का पूरा उद्देश्य गैरकानूनी प्रवासियों को उनके धर्म से बेदखल करना था, असमिया प्रदर्शनकारियों को लगता है कि CAA से राज्य में गैर-मुस्लिम प्रवासियों को लाभ होगा।
इसके अलावा केरल, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में CAA का विरोध इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया। विरोध करने वाले इसे संविधान विरोधी नियम बता रहे हैं। वहीं, NRC पर मचे देश में घमासान पर लोगों का मानना ये है कि, इस नियम के तहत सरकार जिसको भी चाहेगी देश का नागरिक मानने से इंकार कर देगी।
इसलिए भी हो रहा है प्रदर्शन
कानून में हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाने की बात की गई है। इससे भारतीय मुस्लिमानों को कोई परेशानी नहीं होगी। बावजूद इस तरह का भ्रम फैलाया जा रहा है कि ये कानून मुस्लिम विरोधी है। भारतीय मुस्लमानों को ये डर दिखाकर भरमाया जा रहा है कि इस कानून से उनकी नागरिकता भी खतरे में पड़ सकती है। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह समेत सरकार के तमाम मंत्री बयान दे चुके हैं कि ये कानून शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए है। इसमें किसी की नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। किसी भी भारतीय मुस्लिम अथवा नागरिक को इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
इसलिए नहीं जोड़ा गया मुसलमानों को
गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर संसद में बयान दिया था कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश मुस्लिम देश हैं। वहां धर्म के नाम पर बहुसंख्यक मुस्लिमों का उत्पीड़ित नहीं होता है, जबकि इन देशों में हिंदुओं समेत अन्य समुदाय के लोगों को धर्म के आधार पर उत्पीड़न किया जाता है। इसलिए इन देश के मुस्लिमों को नागरिकता कानून में शामिल नहीं किया गया है। हांलाकि, इसके बाद भी वह नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिस पर सरकार विचार कर फैसला लेगी।